बुधवार, 23 मार्च 2011

श्रीनिम्बार्काचार्य



वैष्णव भक्ति में चार सम्प्रदाय हुए हैं, कुमार, श्री, रुद्र और ब्रह्म जिनके प्रवर्त्तक क्रमश निंबार्काचार्य, रामानुजाचार्य, वल्लभाचार्य और माध्वाचार्य हैं। निंबार्काचार्य ने द्वैताद्वैत, रामानुजाचार्य ने विशिष्टाद्वैत, वल्लभाचार्य ने शुद्धाद्वैत और माध्वाचार्य द्वैत की संकल्पना प्रदान की। निंबार्काचार्य इन सभी वैश्न्वाचार्यों में इसलिए विशिष्ट हैं क्योंकि इनके द्वैताद्वैत में सभी संप्रदायों का समन्वय है। यह सबसे प्राचीन वैष्णव सम्प्रदाय माना जाता है। इस सम्प्रदाय का दूसरा नाम हंस सम्प्रदाय भी है।

निंबार्काचार्य का वास्तविक नाम नियमानन्द था। इन्हें भगवान के सुदर्शन चक्र का अवतार माना जाता है। इनका जन्म लगभग पाँच हज़ार वर्ष पूर्व वैदूर्यपत्तन,महाराष्ट्र में हुआ था। ऐसा प्रसिद्ध है कि इनके उपनयन के समय स्वयं देवर्षि नारद ने इन्हें श्री गोपाल-मन्त्र की दीक्षा प्रदान की थी तथा श्रीकृष्णोपासना का उपदेश दिया था। इनके गुरु देवर्षि नारद थे तथा नारद के गुरु श्रीसनकादि थे। इसलिए इनका सम्प्रदाय सनकादि सम्प्रदाय के नाम से भी प्रसिद्ध है।

निंबार्काचार्य अर्थात नियमानन्द यमुना तटवर्ती ध्रुव क्षेत्र में निवास किया करते थे। एक दिन एक दण्डी संन्यासी इनके आश्रम पर आए। उनके साथ वे भगवद चर्चा में इतने तल्लीन हो गए कि सूर्यास्त हो गया। उन्होंने अपने अतिथि संन्यासी से भोजन करने का निवेदन किया। दण्डी संन्यासी प्राय: सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करते, इसलिए उन्होंने भोजन करने में अपनी असमर्थता व्यक्त की। अतिथि के बिना भोजन किए लौट जाने की बात पर नियमानन्द को बहुत पश्चाताप हुआ। भगवान ने भक्त की रक्षा के लिए प्रकृति के नियमों में परिवर्तन की अद्भुत लीला रची। सभी लोगों ने आश्चर्यचकित होकर देखा कि इनके आश्रम के निकट नीम के ऊपर सूर्यदेव प्रकाशित हो गए हैं। भगवान की अपार करुणा का प्रत्यक्ष दर्शन करके आचार्य का हृदय गदगद हो गया। उन्होंने अपने अतिथि को भोजन कराया। अतिथि के भोजनोपरान्त ही सूर्यास्त हुआ। लोगों ने इस अद्भुत लीला को श्रीनिम्बार्काचार्य की सिद्धि के रूप में देखा,तभी से उनका नाम निम्बार्क प्रसिद्ध हुआ, ‘निम्ब’ अर्थात नीम और ‘अर्क’ अर्थात सूर्य।

वर्तमान में संप्रदाय के आचार्य जगदगुरु श्री श्री राधा सर्वेश्वरशरण देवाचार्य 'श्रीजी महाराज' हैं जो राजस्थान के अजमेर, किशनगढ़ में विराजमान हैं। सम्प्रदाय का प्रधान ग्रन्थ श्रीमद्भागवत है।

राधे कृष्ण राधे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण राधे राधे।
राधे श्याम राधे श्याम, श्याम श्याम राधे राधे ।।