रविवार, 12 जून 2011

श्रीनाथजी का स्वरूप


श्रीनाथजी निकुंज के द्वार पर स्थित भगवान् श्रीकृष्ण का साक्षात स्वरूप हैं। वह अपना वाम (बायाँ) श्रीहस्त ऊपर उठाकर अपने भक्तों को अपने पास बुला रहे हैं मानो कह रहे हों , ''मेरे परम प्रिय! हजारों वर्षो से तुम मुझसे बिछुड़ गए हो, मुझे तुम्हारे बिना सुहाता नहीं है। आओ मेरे निकट आओ और लीला का रसपान करो। श्रीनाथजी द्वारा वाम श्रीहस्त उठाकर भक्तों को पुकारने का तात्पर्य है कि प्रभु अपने पुष्टि भक्तों की पात्रता, योग्यता-अयोग्यता का विचार नहीं करते और न उनसे भगवत्प्राप्ति के शास्त्रों में कहे गए साधनों की अपेक्षा ही करते हैं। वे तो निःसाधन जनों पर कृपा कर उन्हे टेर रहे है। श्रीहस्त ऊँचा उठाकर यह भी संकेत कर रहे हैं कि जिस लीला रस का पान करने के लिए वे भक्तों को आमंत्रित कर रहे हैं, वह सांसारिक विषयों के लौकिक आनन्द और ब्रह्मानन्द से ऊपर उठाकर भक्त को भजनानन्द में मग्न करना चाहते हैं। परम प्रभु श्रीनाथजी का स्वरूप दिव्य सौन्दर्य का भंडार और माधुर्य की निधि है। मधुराधिपति श्रीनाथजी का सब कुछ मधुर ही मधुर है। अपने सौन्दर्य एवं माधुर्य से भक्तों को वे ऐसा आकर्षित कर लेते हैं कि भक्त प्रपंच को भूलकर देह-गेह-संबंधीजन-जगत् सभी को भुलाकर प्रभु में ही रम जाता है, उन्ही में पूरी तरह निरूद्ध हो जाता है। यही तो हैं प्रभु का भक्तों के मन को अपनी मुट्ठी बाँधना। वास्तव में, प्रभु अपने भक्तों के मन को मुट्ठी में कैद नहीं करते वे तो प्रभु-प्रेम से भरे भक्त-मन रूपी बहुमूल्य रत्नों को अपनी मुट्ठी में सहेज कर रखते हैं। इसी कारण, श्रीनाथजी दक्षिण (दाहिने) श्रीहस्त की मुट्ठी बाँधकर अपनी कटि पर रखकर निश्चिन्त खड़े हैं। दाहिना श्रीहस्त प्रभु की अनुकूलता का द्योतक है। इससे श्रीनाथजी की चातुरी प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर होती है। प्रभु श्रीनाथजी नृत्य की मुद्रा में खड़े हैं। यह आत्मस्वरूप गोपियों के साथ प्रभु के आत्मरमण की, रासलीला की भावनीय मुद्रा है। रासरस ही परम रस है, परम फल है। प्रभु भक्तों को वही देना चाहते हैं।

श्रीनाथजी के मस्तक पर जूड़ा है, मानों श्री स्वामिनीजी ने प्रभु के केश सँवार कर जूड़े के रूप में बाँध दिए है। कर्ण और नासिका में माता यशोदा के द्वारा कर्ण-छेदन-संस्कार के समय करवाए गए छेद हैं। आप श्रीकंठ में एक पतली सी माला 'कंठसिरी' धारण किए हुए है। कटि पर प्रभु ने 'तनिया' (छोटा वस्त्र) धारण कर रखा है। घुटने से नीचे तक लटकने वाली 'तनमाला' भी प्रभु ने धारण कर रखी है। श्रीनाथजी के श्रीहस्त में कड़े है, जिन्हे मानों श्रीस्वामिनीजी ने प्रेमपूर्वक पहनाया है। निकुंजनायक श्री नाथजी का यह स्वरूप किशोरावस्था का है। प्रभु श्री कृष्ण श्यामवर्ण हैं। श्रृंगार रस का वर्ण श्याम ही हैं। प्रभु श्रीनाथजी तो श्रृंगार रस और परम प्रेम का स्वरूप हैं। उनके स्वरूप की एक विशेषता यह है कि भक्तों के प्रति उमड़ने वाले अनुराग से श्यामता मे लालिमा के भी दर्शन होते हैं। इसी कारण श्रीनाथजी का स्वरूप लालिमायुक्त श्यामवर्ण का है। प्रभु की दृष्टि सम्मुख और किचिंत नीचे की ओर है क्योंकि वह शरणागत भक्तो पर स्नेहमयी कृपा दृष्टि डाल रहे हैं।

श्रीनाथजी की यह कृपा दृष्टि ही भक्तों का सर्वस्व है।