गुरुवार, 13 जनवरी 2011

श्रीराधाकुंड



श्रीराधाकुण्ड वह कुण्ड है जहाँ श्रीमती राधारानी सखियों के संग जलविहार और स्नान करती हैं। यह श्रीयुगल दिव्य लीला विलास व केलि–क्रीड़ा का स्थल है। वराह पुराण में श्रीराधाकुण्ड का उल्लेख समस्त पापों का क्षय करने वाले और प्रेम स्वरूप कैवल्य प्रदान करने वाले कुण्ड के रूप में किया गया है। पद्म पुराण के अनुसार, श्रीकृष्ण को राधाजी जितना ही राधाकुण्ड प्रिय है। श्रील रूप गोस्वामी ने अपने ‘श्रीउपदेशामृत’ में कहा है कि व्रज के सभी स्थलों में श्रीराधाकुण्ड सबसे श्रेष्ठ है, और उसका कारण यह है कि यह कृष्ण प्रेम के अमृत रस से परिपूरित है। श्रीयुगल की दिव्यलीला व केलि-क्रीड़ा के कारण इसे नंदगाँव, बरसाना, वृंदावन और गोवर्धन से भी श्रेष्ठ भजन स्थली बताया गया है। श्रीरघुनाथदास गोस्वामी यहाँ तक कहते हैं कि ब्रजमंडल की अन्यान्य लीलास्थलियों की तो बात ही क्या, रसमयी रहस्यमयी केलि–क्रीड़ा के स्थल परम सुरम्य श्री वृन्दावन और श्रीगोवर्धन भी श्रीमुकुन्द के प्राणों से भी अधिक प्रिय श्रीराधाकुण्ड की महिमा के अंश के अंश मात्र भी बराबरी नहीं कर सकते। श्रीचैतन्य महाप्रभुजी ने स्वयं इस परम भक्ति स्थल का प्रकाशन किया था। श्रीराधाकुंड की परम महिमा के स्वरूप ही अनेक संतों और गोस्वामियों ने अपनी भजन कुटी इसके पास बनायीं।

श्रीराधाकुण्ड, दिल्ली से करीब 150, वृंदावन से 22 और मथुरा से 26 किमी दूर गिरिराज गोवर्धन की उत्तर दिशा में स्थित है। इसी कुण्ड के साथ श्याम कुण्ड है। दोनों श्रीराधा‌-कृष्ण के स्वरूप की तरह अभिन्नता के साथ आपस में जुड़े हुए हैं। राधाकुंड और श्यामकुंड श्रीगिरिराज गोवर्धन रूपी मयूर के नेत्र के समान बताए गए हैं।

यह कुण्ड आरिट गाँव में है। यहीं श्रीकृष्ण ने अरिष्टासुर का वध किया था जो साँड का रूप धारण करके उन्हें मारने आया था । इस गाँव का नाम आरिट उसी असुर के नाम पर ही है। अरिष्टासुर के वध के पश्चात जब रात्रिबेला में जगतपति श्रीकृष्ण प्रियाजी और सखियों से मिलन के लिए गए तो श्रीप्रियाजी परिहास करते हुए ठाकुरजी से बोलीं की आज आप पर गौ (वृष)हत्या का पाप लगा हुआ है, पहले आप पृथ्वी के समस्त तीर्थों में स्नान करके पवित्र होकर आएं। सखियों ने भी प्रियाजी का अनुमोदन किया। ठाकुरजी ने उसी समय अपनी एड़ी की चोट से एक विशाल कुंड का निर्माण कर पृथ्वी के सभी तीर्थों का आह्वान किया। तुरंत कुंड निर्मल जल से पूरित हो गया। ठाकुरजी ने उसमें स्नान करके स्वयं को पवित्र किया। किन्तु मानिनी राधाजी ने अपने कंकण से उस कुंड से भी सुंदर कुंड का निर्माण किया लेकिन उसमें एक बूंद भी जल नहीं निकला। लीलाधारी कृष्ण ने हँस कर अपने कुंड से जल लेने के लिए कहा किन्तु राधाजी सखियों संग घड़े लेकर मानसी गंगा जाने लगीं। श्रीक़ृष्ण ने तीर्थों से श्रीराधिका जी को मनाने के लिए कहा। राधाजी ने सहर्ष तीर्थों को कुंड में प्रवेश करने की अनुमति दे दी। श्रीप्रिय-प्रियाजी ने सखियों के साथ सप्रसन्न दोनों, राधाकुंड और श्यामकुंड में स्नान और जलविहार किया।

दोनों कुंडो का प्रकाश कार्तिक माह की कृष्णाष्टमी, दीपावली के दिन हुआ था इसलिए हर वर्ष इस दिन अर्द्धरात्रि में लाखों भक्त यहाँ स्नान करते हैं। कहते हैं कि इस दिन स्नान करने से सच्चे भक्तों को श्रीश्यामा-श्याम की प्रेमाभक्ति प्राप्त होती है और राधाकुंड में अखिल ब्रह्मांड और व्रजमंडल के दर्शन होते हैं।
जय जय श्रीराधेश्याम!!!!