गुरुवार, 24 सितंबर 2009

भज गोविन्दम



'भज गोविन्दम' स्तोत्र की रचना शंकराचार्य ने की थी। यह मूल रूप से बारह पदों में सरल संस्कृत में लिखा गया एक सुंदर स्तोत्र है। इसलिए इसे द्वादश मंजरिका भी कहते हैं। 'भज गोविन्दम' में शंकराचार्य ने संसार के मोह में ना पड़ कर भगवान् कृष्ण की भक्ति करने का उपदेश दिया है। उनके अनुसार, संसार असार है और भगवान् का नाम शाश्वत है। उन्होंने मनुष्य को किताबी ज्ञान में समय ना गँवाकर और भौतिक वस्तुओं की लालसा, तृष्णा व मोह छोड़ कर भगवान् का भजन करने की शिक्षा दी है। इसलिए 'भज गोविन्दम' को 'मोह मुगदर' यानि मोह नाशक भी कहा जाता है। शंकराचार्य का कहना है कि अन्तकाल में मनुष्य की सारी अर्जित विद्याएँ और कलाएँ किसी काम नहीं आएँगी, काम आएगा तो बस हरि नाम।
प्रस्तुत है, सुब्बुलक्ष्मी के स्वर में भज गोविन्दम :

M S Subbulakshmi -...

सोमवार, 21 सितंबर 2009

जैसे सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को मिल जाए.....



जैसे सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को
मिल जाये तरुवर कि छाया
ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है
मैं जबसे शरण तेरी आया, मेरे राम
भटका हुआ मेरा मन था कोई
मिल ना रहा था सहारा
लहरों से लड़ती हुई नाव को
जैसे मिल ना रहा हो किनारा
उस लड़खड़ाती हुई नाव को जो
किसी ने किनारा दिखाया
ऐसा ही सुख ...
शीतल बने आग चंदन के जैसी
राघव कृपा हो जो तेरी
उजियाली पूनम की हो जाएं रातें
जो थीं अमावस अंधेरी
युग-युग से प्यासी मरुभूमि ने
जैसे सावन का संदेस पाया
ऐसा ही सुख ...
जिस राह की मंज़िल तेरा मिलन हो
उस पर कदम मैं बढ़ाऊं
फूलों में खारों में, पतझड़ बहारों में
मैं न कभी डगमगाऊं
पानी के प्यासे को तक़दीर ने
जैसे जी भर के अमृत पिलाया
ऐसा ही सुख ...


गुरुवार, 17 सितंबर 2009

मुरली वाले ने घेर लई...................

बुधवार, 16 सितंबर 2009

ऊधो को गोपियों का उलाहना...........................


भजन सूरदास का, स्वर पुरुषोत्तम दास जलोटा का और राग है-वृन्दावनी सारंग।

मंगलवार, 15 सितंबर 2009

मैली चादर...........


मैली चादर ओढ़ के कैसे द्वार तुम्हारे आऊँ
हे पावन परमेश्वर मेरे मन ही मन शरमाऊँ
तुमने मुझको जग में भेजा निर्मल देके काया
आकर के संसार मैं मैंने इसको दाग लगाया
जनम जनम की मैली चादर कैसे दाग छुडाऊँ
निर्मल वाणी पाकर तुझसे नाम ना तेरा गाया
नयन मूंदकर हे परमेश्वर कभी ना तुझको ध्याया
मन वीणा की तारें टूटी अब क्या गीत सुनाऊँ
इन पैरों से चलकर तेरे मंदिर कभी न आया
जहाँ जहाँ हो पूजा तेरी कभी न शीश झुकाया
हे हरिहर मैं हार के आया अब क्या हार चढाऊँसा
हरि ओम शरण के स्वर में :
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अनूप जलोटा के स्वर में:

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रविवार, 13 सितंबर 2009

नन्द-नंदनम

करो मन नन्द नंदन को ध्यान।
यह अवसर तोहे फिर ना मिलेगो, मेरो कहो अब मान॥
घूँगर वाली अलकें उसपर, कुंडल झलकत कान।
नारायण अलसाने नयना, झूमत रूप निधान॥






सोमवार, 7 सितंबर 2009

गोविन्द दामोदर माधवेति

ना मैं वैकुण्ठ में रहता हूँ और ना मैं योगियों के हृदय में बसता हूँ। हे नारद! जहाँ मेरे भक्त मेरा कीर्तन करते हैं, मैं वहीं रहता हूँ।

कौन सी ने कर दियो री टोना............




शुक्रवार, 4 सितंबर 2009

मैं नहि माखन खायौ


प्रबल प्रेम के पाले पड़कर, प्रभु को नियम बदलते देखा,
अपना मान रहे ना रहे, पर भक्त का मान ना टलते देखा,
जिसकी केवल कृपा दृष्टि पर, सकल विश्व को पलते देखा,
उनको गोकुल के गौरस पर, सौ सौ बार मचलते देखा।