रविवार, 26 जुलाई 2009

संगीतमय मधुराष्टकं


पद्मपुराण में भगवान् कहते हैं, हे नारद! ना तो मैं वैकुण्ठ में रहता हूँ और ना ही योगियों के हृदय में। मैं तो वहीं रहता हूँ जहाँ मेरे भक्त मेरा कीर्तन करते हैं।
प्रस्तुत है, मधुराष्टकं का संगीतमय रूप। इसे मधुर गायक येसुदासजी ने गाया है।








Madhurashtakam.mp3

4 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया. पिछली पोस्ट में ये एक कमी रह गयी थी. यही अगर एम् एस सुब्बुलक्ष्मी की आवाज़ में मिलता तो मेरी खोज पूरी हो जाती:(

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  2. संजयजी, दरअसल सुब्बुलक्ष्मीजी के स्वर में लय का उतार-चढ़ाव कम और नक्सुरापन व एकरसता ज्यादा रहती है। इसीलिए मैंने येसुदास जी के स्वर में मधुराष्टकं चुना.

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