भगवान् श्री कृष्ण के अनेक अनन्य भक्त हुए हैं जिन्होंने अपने एकनिष्ठ प्रेम, समर्पण और भगवद ज्ञान से लोकमानस में भक्तिभाव का संचार किया। ७०० वर्ष पहले केरल में ऐसे ही एक असाधारण भक्त बिल्वमंगल हुए। कहा जाता है कि उन्हें एक वेश्या चिंतामणि से प्रेम हो गया था। एक बार उन पर उससे मिलन की उत्कंठा इतनी हावी हो गई कि पिता का क्रिया कर्म करते ही वे उससे मिलने दौड़ पड़े। तेज वर्षा में भी वे आगे बढ़ते रहे। वासना में डूबे हुए बिल्वमंगल ने तैरते शव पर चढ़ कर नदी को पार किया और दीवार पर लटकते साँप को पकड़कर अपनी प्रेयसी के पास पहुँच गये। जब चिंतामणि ने भीगे हुए बिल्वमंगल के हृदय की कामाग्नि देखी तो सलाह दी, "तुम माँस और हड्डी से बने इस तन की बजाय अचिंत्य भगवान श्रीकृष्ण से प्रेम करते तो तुम्हे पूर्ण और शाश्वत सुख मिल जाता।" बिल्वमंगल की चेतना लौटी और वे तुरंत वृंदावन चल पड़े। उन्होंने श्रीकृष्ण प्रेम की सुन्दर व मधुर कृति ‘श्रीकृष्ण कर्णामृतं’ के प्रथम श्लोक का आरम्भ आभार स्वरुप ‘चिंतामणि जयति.....’ से किया है। । श्री राधा-कृष्ण की माधुर्य पूर्ण लीला में प्रवेश के बाद उनका नाम लीला शुक हो गया। वे उन्मत्त होकर गोविन्द लीलागान करते थे। वे वृन्दावन में ब्रह्म कुंड के पास कुटिया में रहने लगे। भगवान् बालक रूप में उनके साथ खेला करते। लीला शुक उन्हें लाड़ से उन्नी बुलाया करते थे। उन्होंने ही माधुर्य लीला में श्रीमती राधारानी की सर्वोच्चता स्थापित की। उन्हीं के आधार पर ही, बाद में छह गोस्वामियों आदि संतों ने श्री राधा-कृष्ण लीला रूप को आधार बनाया और श्रीराधा भाव का विस्तार किया । बिल्वमंगल अर्थात लीला शुक की समाधि वृंदावन के गोपीनाथ बाज़ार में है।
लीला शुक द्वारा रचित ‘श्रीकृष्ण कर्णामृतं’ तीन अध्यायों में निबद्ध है और इसका एक-एक श्लोक कांतिमय मोती के समान है। इसी मधुर कृति में से प्रस्तुत है- एक उज्जवल मोती जिसमें भगवान् श्रीकृष्ण की स्तुति बहुत भावपूर्ण एवं रसपूर्ण ढंग से की गई है। पहले श्लोक है, उसके बाद इसका अर्थ दिया गया है। श्लोक रूपी मोती को ओजस्वी स्वर में पिरोया है, संगीत मार्तंड जसराज ने।
कस्तूरी तिलकं ललाट पटले वक्ष: स्थले कौस्तुभं ।
नासाग्रे वरमौक्तिकं करतले वेणु: करे कंकणं॥
सर्वांगे हरि चन्दनं सुललितं कंठे च मुक्तावली।
गोपस्त्रीपरिवेष्टितो विजयते गोपाल चूडामणि: ॥
'हे श्रीकृष्ण! आपके मस्तक पर कस्तूरी तिलक सुशोभित है। आपके वक्ष पर देदीप्यमान कौस्तुभ मणि विराजित है। आपने नाक में सुंदर मोती पहना हुआ है। आपके हाथ में बांसुरी है और कलाई में आपने कंगन धारण किया हुआ है। हे हरि! आपकी सम्पूर्ण देह पर सुगन्धित चंदन लगा हुआ है और सुंदर कंठ मुक्ताहार से विभूषित है। आप सेवारत गोपियों के मुक्ति प्रदाता हैं। हे ईश्वर! आपकी जय हो। आप सर्वसौंदर्यपूर्ण हैं।'
|
very informative indeed ! a similar story is linked with Sant Tulsidas as well . Thnx for a very sweet piece of music as well , may this treasure grow !
जवाब देंहटाएं